मेरठ : पश्चिमी यूपी को गन्ना बेल्ट के तौर पर जाना जाता है। लेकिन, गन्ना किसानों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। किसान चीनी मिलों को गन्ना देते हैं लेकिन उसका भुगतान देरी से होता है। गन्ना किसानों का राज्य की चीनी मिलों पर हजारों करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया है। वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में गन्ना उगाया जाता है. लेकिन, पश्चिमी यूपी के किसानों के लिए गन्ना सबसे अहम फसल है। यहां गन्ने का उत्पादन काफी ज्यादा होता है। इसलिए यहां के किसान भुगतान न होने से ज्यादा प्रभावित होते हैं। यही वजह है कि राज्य की सियासत में गन्ना हमेशा से मुद्दा रहा है।
राजनीतिक दल भी किसानों को आकर्षित करने के लिए मंच से गन्ने का जिक्र करते रहे हैं। बड़े किसान आंदोलनों में भी गन्ना छाया रहा है। समय के साथ बदलाव तो आए हैं, लेकिन क्या गन्ना किसानों की हालत बदली है? इस सवाल का जवाब यूपी के किसान आज भी तलाश रहे हैं। घने कोहरे और पाले की परवाह किए बिना महीनों से चीनी मिलों को गन्ना देने के बावजूद किसान अभी भी अपने पैसे का इंतजार करते नजर आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में कुल 122 चीनी मिलें हैं। इस पेराई सत्र में चीनी मिलों ने 35,000 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है। अगर भुगतान की बात करें तो अब तक 88.38 फीसदी भुगतान हो चुका है। इसके बाद इस पेराई सत्र का 4,000 करोड़ रुपये अभी भी बकाया है। यह एक सत्र की बकाया राशि है। अगर पिछले अन्य सत्रों की बात करें तो उनका भी भुगतान लंबित है। अगर इन लंबित आंकड़ों को शामिल कर लिया जाए तो यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि यह राशि कितनी होगी।
आपको बता दें कि किसानों का सबसे ज्यादा भुगतान निजी चीनी मिलों पर बकाया है। ताजा सत्र की बात करें तो निजी चीनी मिलों द्वारा 87.58 फीसदी भुगतान किया जा चुका है। यानी करीब 12.5 फीसदी भुगतान अभी भी लंबित है। इसी तरह निगम की चीनी मिलों ने 97.54 प्रतिशत भुगतान कर दिया है, यानि करीब 2.5 प्रतिशत भुगतान लंबित है। सहकारी चीनी मिलों ने 92.86 प्रतिशत भुगतान कर दिया है। यानि करीब 7 प्रतिशत भुगतान लंबित है। निजी चीनी मिलों में सबसे ज्यादा बकाया बजाज ग्रुप पर है, जिसकी प्रदेश में 14 चीनी मिलें हैं। इन पर करीब 2300 करोड़ रुपये का गन्ना भुगतान लंबित है।

